गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

इससे पहले, उसके बाद

अजीब सी जलन होती है, आँखों में,
तुम्हे देखने से पहले, तुम्हे देखने के बाद....!

धड़क उठता है दिल,  मुस्करा देतें हैं होंठ,
तुम्हारे मिलने से पहले, तुम्हारे मिलने के बाद....!

मेरे हाथ कांपते रहतें हैं अक्सर,
तुम्हे छूने से पहले, तुम्हे छूने के बाद....!

अक्सर मैं सोच में पड़ जाता हूँ, उसकी बातों पर,
उसके कुछ बोलने से पहले, उसके कुछ बोलने के बाद...!

समझ नही आता, वो क्यू नज़रें चुरातें हैं,
हमसे नज़रें मिलाने से पहले और नज़रें मिलाने के बाद...!

पर उसे भी असमंजस में पड़ते देखा है मैंने,
जज्बात-ए-इज़हार से पहले, और झूठे इन्कार के बाद....!

हमारी वफ़ा का इम्तेहान अक्सर लेते हैं वो, ये पूछ कर,
क्या करते थे, क्या करोगे ?  हमसे मिलने से पहले, हमारे मिलने के बाद....!

अब क्या बताऊ उसे, क्या-क्या होता हैं,
उसके लिए कुछ करने से पहले, कुछ करने के बाद .....!

'राज' तेरी कलम भी कहाँ सोचती हैं,
जज्बात-ए-दिल लिखने से पहले, और लिखने के बाद...!!