शनिवार, 22 अगस्त 2015

करुना करिके करुनानिधि रोये।

नरोत्तम दास जी ने दिल ही निचोड़ कर रख दिया, बचपन से ही ये पंक्तियाँ मेरे दिल के बहुत करीब रही हैं ..!

(श्रीकृष्ण का द्वारपाल)
सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनि,

छाँड़े राज-काज ऐसे जी की गति जानै को?

द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय,

भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै को?

नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि,

बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने को?

जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधु,

ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने को?

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये

(श्री कृष्ण)
कछु भाभी हमको दियौ, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहौ केहि हेत॥

आगे चना गुरु-मातु दिये त, लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सों, चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥

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