गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

इससे पहले, उसके बाद

अजीब सी जलन होती है, आँखों में,
तुम्हे देखने से पहले, तुम्हे देखने के बाद....!

धड़क उठता है दिल,  मुस्करा देतें हैं होंठ,
तुम्हारे मिलने से पहले, तुम्हारे मिलने के बाद....!

मेरे हाथ कांपते रहतें हैं अक्सर,
तुम्हे छूने से पहले, तुम्हे छूने के बाद....!

अक्सर मैं सोच में पड़ जाता हूँ, उसकी बातों पर,
उसके कुछ बोलने से पहले, उसके कुछ बोलने के बाद...!

समझ नही आता, वो क्यू नज़रें चुरातें हैं,
हमसे नज़रें मिलाने से पहले और नज़रें मिलाने के बाद...!

पर उसे भी असमंजस में पड़ते देखा है मैंने,
जज्बात-ए-इज़हार से पहले, और झूठे इन्कार के बाद....!

हमारी वफ़ा का इम्तेहान अक्सर लेते हैं वो, ये पूछ कर,
क्या करते थे, क्या करोगे ?  हमसे मिलने से पहले, हमारे मिलने के बाद....!

अब क्या बताऊ उसे, क्या-क्या होता हैं,
उसके लिए कुछ करने से पहले, कुछ करने के बाद .....!

'राज' तेरी कलम भी कहाँ सोचती हैं,
जज्बात-ए-दिल लिखने से पहले, और लिखने के बाद...!!

रविवार, 29 नवंबर 2015

लिख दिया अपने दर पे किसी ने

लिख दिया अपने दर पे किसी ने,
इस जगह प्यार करना मना हैं,
प्यार अगर हो भी जाये किसीको,
उसका इजहार करना मना है !

उनकी महफ़िल में जब कोई जाये,
पहले नज़रों को अपनी झुकाये,
वो सनम जो खुदा बन गए हैं,
उनका दीदार करना मना हैं !

जाग उठेंगे तो आहें भरेंगे,
हुस्नवालों को रुसवा करेंगे,
सो गए हैं जो फुरकत के मारे,
उनको बेदार करना मना हैं !

हमने की अर्ज ऐ बंदा परवर,
क्यों सितम ढा रहे हो ये हम पर,
बात सुनकर हमारी वो बोले,
हमसे तकरार करना मना हैं !

सामने जो खुला है झरोखा,
खा न जाना क़ातिल कहीं उनपे धोखा,
अब भी अपने लिए उस गली में,
शौक-ऐ-दीदार करना मना हैं !

लिख दिया अपने दर पे किसी ने,
इस जगह प्यार करना मना हैं...!

नुसरत फ़तेह अली खान 

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

खूब सारी चमचागिरी और तेल मालिश करने के बाद आख़िरकार हमने डेंगू मच्छरों,
के सरदार को इंटरव्यू देने के लिए राजी कर ही लिया। ये रहे मच्छर के साथ हमारे 
एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के प्रमुख बिंदु ... 
हम : आपका प्रकोप दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है? क्यों ? 
मच्छर : सही शब्द इस्तेमाल कीजिए, इसे प्रकोप नहीं फलना-फूलना कहते हैं। 
पर तुम इंसान लोग तो दूसरों को फलते-फूलते देख ही नहीं सकते।  आदत से 
मजबूर जो ठहरे... 
हम : हमें आपके फलने-फूलने से कोई ऐतराज़ नहीं है पर आपके काटने से लोग 
जान गंवा रहे हैं, जनता में भय व्याप्त हो गया है। 
मच्छर : हम सिर्फ अपना काम कर रहे हैं। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि ‘कर्म
ही पूजा है’। अब विधाता ने तो हमें काटने के लिए ही बनाया है, हल में जोतने के 
लिए नहीं। जहां तक लोगों के जान गंवाने का प्रश्न है,  तो आपको मालूम होना चाहिए
कि “हानि-लाभ, जीवन-मरण,यश-अपयश विधि हाथ’ …  

हम : लोगों की जान पर बनी हुई है और आप हमें दार्शनिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं। 
मच्छर : आप तस्वीर का सिर्फ एक पहलू देख रहे हैं। हमारी वजह से कई लोगों को 
लाभ भी होता है, ये शायद आपको पता नहीं।  जाइये इन दिनों किसी डॉक्टर, 
केमिस्ट या पैथोलॉजी लैब वाले के पास, उसे आपसे बात करने की फ़ुर्सत नहीं 
होगी अरे भैया, उनके बीवी-बच्चे हमारा ‘सीजन’ आने की राह देखते हैं,
ताकि उनकी साल भर से पेंडिंग पड़ी मांगे पूरी हो सकें। क्या समझे आप? हम 
देश की इकॉनोमी बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं, ये मत भूलिएगा। 
हम : परन्तु मर तो गरीब रहा है न, जो इलाज करवाने में सक्षम ही नहीं है। 
मच्छर : हां तो गरीब जी कर भी क्या करेगा? जिस गरीब को आप अपना 
घर तो छोड़ो, कॉलोनी तक में घुसने नहीं देना चाहते, उसके साथ किसी तरह 
का संपर्क नहीं रखना चाहते, उसके मरने पर तकलीफ होने का ढ़ोंग करना 
बंद कीजिए आप लोग। 

हम : आपने दिल्ली में कुछ ज्यादा ही कहर बरपा रखा है?
मच्छर : देखिए हम पॉलिटिशियन नहीं हैं जो भेदभाव करें … हम सभी जगह 
अपना काम पूरी मेहनत और लगन से करते हैं। दिल्ली में हमारी अच्छी परफॉरमेंस
की वजह सिर्फ इतनी है कि यहां हमारे काम करने के लिए अनुकूल माहौल है। 
केंद्र और राज्य सरकार की आपसी जंग का भी हमें भरपूर फायदा मिला है।
हम : खैर, अब आखिर में आप ये बताइए कि आपके इस प्रकोप से बचने 
का उपाय क्या हैं?
मच्छर : उपाय तो है अगर कोई कर सके तो … लगातार सात शनिवार तक 
काले-सफ़ेद धब्बों वाले कुत्ते की पूंछ का बाल लेकर बबूल के पेड़ की जड़ में बकरी
 के दूध के साथ चढ़ाने से हम प्रसन्न हो जायेंगे और उस व्यक्ति को नहीं काटेंगे। 
हम : आप उपाय बता रहे हैं या अंधविश्वास फैला रहे हैं ?
मच्छर : दरअसल 
आम हिन्दुस्तानी लोग ऐसे ही उपायों के साथ कंफर्टेबल फील करते हैं।
उन्हें विज्ञान 
से ज्यादा कृपा में यकीन होता है…. वैसे सही उपाय तो साफ़-सफाई रखना है, 
जो रोज ही टीवी चैनलों और अखबारों के जरिये बताया जाता है, पर उसे मानता कौन है ? 
अगर उसे मान लिया होता तो आज आपको मेरा इंटरव्यू लेने नहीं आना पड़ता ... !

साभार . वे.दु

शनिवार, 22 अगस्त 2015

करुना करिके करुनानिधि रोये।

नरोत्तम दास जी ने दिल ही निचोड़ कर रख दिया, बचपन से ही ये पंक्तियाँ मेरे दिल के बहुत करीब रही हैं ..!

(श्रीकृष्ण का द्वारपाल)
सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनि,

छाँड़े राज-काज ऐसे जी की गति जानै को?

द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय,

भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै को?

नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि,

बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने को?

जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधु,

ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने को?

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये

(श्री कृष्ण)
कछु भाभी हमको दियौ, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहौ केहि हेत॥

आगे चना गुरु-मातु दिये त, लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सों, चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥