शनिवार, 18 अगस्त 2018

अटल यात्रा

मेरे मस्तिष्क पटल से वह दृश्य मिटाएं नहीं मिट रहा जिसमें एक महामानव का महाप्रयाण का दृश्य है और कदाचित यह मेरे स्वयं के प्रयाण से पहले मिटे भी नहीं और साथ ही जाए। महामानव भी कैसा अटल जी जैसा! और विदाई देने वाला नायक नरेंद्र जैसा। यह दृश्य मुझे पितामह भीष्म की अंतिम विदाई के समय कृष्ण के साथ पहुंचे पांडवों द्वारा दी गई विदाई के सदृश्य ही दिखी और विदुर ही की भांति मैं हस्तिनापुर की अपनी कुटी में ही बैठा रहा अंदर यही भाव लिये कि मेरे मस्तिष्क पटल पर जो श्वेत छवि अटल जी की थी वही बरकरार रखना चाहता था। उनकी निश्चेतन अवस्था को नहीं देखना चाहता था। कृष्ण ने ठीक ही कहा था कि :-
"धन्य हैं वे आंखें जो नश्वर के अनश्वर होने का दृश्य देख रही हैं।"



महाभारत सा युद्ध न हो,
न हो अन्याय की कोई बात..!
चलो हम हो ले उसके साथ,
करे जो कृष्ण की जैसी बात..!!
"!!कर्म है गीता का उपदेश, महाभारत है शान्ति संदेश!!"

सोमवार, 6 अगस्त 2018

चेहरा

कभी - कभी कुछ चेहरे जीने का सबक दे जाते हैं........
कभी - कभी कुछ चेहरे एक नयी शुरुआत का हौसला दे जाते हैं....
कभी - कभी कुछ चेहरे जीवन को नए सिरे से जीने का इशारा कर जाते हैं  .....
कभी - कभी कुछ चेहरे मर चुके अहसासों में हलचल मचा जाते हैं  .....
कभी - कभी कुछ चेहरे फिर से जीने का अरमान जगा जाते हैं  .......
उन चेहरों का न तो नाम होता हैं न पता होता है बस अपनापन का एहसास जगा जाते हैं  ....

वो चेहरा ......
मानो प्यार की मूरत, एहसासों का समंदर, जज्बा-ए-इश्क़,
जाते -जाते कुछ यूं इशारा कर गया,
मानो मेरा सारा ग़म  ले गया,
चेहरे पे हमेशा के लिए मुस्कराहट छोड़ गया  ......

वो कौन है ?  कैसा हैं ?
मेरी कल्पना में उस चेहरे से सवाल जारी हैं  ......
उससे मिलन के एहसास जारी हैं  ........
उसकी तलाश जारी हैं  .............!

रविवार, 5 अगस्त 2018

लोकतंत्र_के_चौथे_स्तम्भ_का_कंफ्यूज़न


विधायिका, कार्यपालिका, न्‍यायपालिका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्‍तंभ माना जाता है। इसमें चौथे स्‍तंभ के रूप में मीडिया को शामिल किया गया।  लोकतंत्र की सफलता के लिए जरूरी है कि उसके ये चारों स्तंभ मजबूत हों। चारों अपना अपना काम पूरी जिम्मेदारी व निष्ठा से करें। विधायिका कानून बनाती है, कार्यपालिका उन्‍हें लागू करती है और न्‍यायपालिका कानूनों की व्‍याख्‍या करती है एवं उनका उल्‍लंघन करने वालों को सजा देती है। 
अब मीडिया आजकल कन्फ्यूज्ड है कि किसका पक्ष ले ? सत्तापक्ष का या विपक्ष का? इसी कन्फ्यूजन में बवाल पर बवाल काट रहा है। अब इसका नतीजा यह हुआ है कि कुछ हिस्सा सत्ता पक्ष के साथ हो गया है तो कुछ विपक्ष के साथ चिपक गया है जबकि पत्रकार को पक्षकार नहीं होना चाहिए।  उसका स्वतंत्र अस्तित्व है। अब मीडिया का कुछ हिस्सा यह दलील देने लगा है कि पत्रकार को विपक्ष में बैठ जाना चाहिए या वे स्वयं को ही विपक्ष मानने लगे हैं परंतु यह नहीं समझ रहे हैं या समझना नहीं चाहते कि विधायिका में ही पक्ष और विपक्ष समायोजित हैं। मीडिया समसामयिक विषयों पर लोगों को जागरुक करने तथा उनकी राय बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है तथा अधिकारों/शक्ति के दुरुपयोग को रोकने में भी महत्‍वपूर्ण है। मीडिया जनता और सरकार के बीच की कड़ी है, अच्छा है तो अच्छा दिखाओ गलत है तो गलत दिखाओ, अपना स्वयं का एजेंडा मत चलाओ। अगर पक्ष लेना ही है तो जनहित का पक्ष लो।
अब यही बात मैंने अपने एक पत्रकार बंधु को कही, तो उनका कहना था कि यार अब पत्रकारिता हमें मत समझाओ, तो हमने कहा कि यार जब तुम नेताओं को नेतागिरी करना तथा हमको नौकरी करना सिखा सकते हो तो हम तुम्हें पत्रकारिता करना क्यों नहीं सिखा सकते ? हमारे में कौन सा विटामिन डी की कमी है..?