विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभ माना जाता है। इसमें चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया को शामिल किया गया। लोकतंत्र की सफलता के लिए जरूरी है कि उसके ये चारों स्तंभ मजबूत हों। चारों अपना अपना काम पूरी जिम्मेदारी व निष्ठा से करें। विधायिका कानून बनाती है, कार्यपालिका उन्हें लागू करती है और न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या करती है एवं उनका उल्लंघन करने वालों को सजा देती है।
अब मीडिया आजकल कन्फ्यूज्ड है कि किसका पक्ष ले ? सत्तापक्ष का या विपक्ष का? इसी कन्फ्यूजन में बवाल पर बवाल काट रहा है। अब इसका नतीजा यह हुआ है कि कुछ हिस्सा सत्ता पक्ष के साथ हो गया है तो कुछ विपक्ष के साथ चिपक गया है जबकि पत्रकार को पक्षकार नहीं होना चाहिए। उसका स्वतंत्र अस्तित्व है। अब मीडिया का कुछ हिस्सा यह दलील देने लगा है कि पत्रकार को विपक्ष में बैठ जाना चाहिए या वे स्वयं को ही विपक्ष मानने लगे हैं परंतु यह नहीं समझ रहे हैं या समझना नहीं चाहते कि विधायिका में ही पक्ष और विपक्ष समायोजित हैं। मीडिया समसामयिक विषयों पर लोगों को जागरुक करने तथा उनकी राय बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है तथा अधिकारों/शक्ति के दुरुपयोग को रोकने में भी महत्वपूर्ण है। मीडिया जनता और सरकार के बीच की कड़ी है, अच्छा है तो अच्छा दिखाओ गलत है तो गलत दिखाओ, अपना स्वयं का एजेंडा मत चलाओ। अगर पक्ष लेना ही है तो जनहित का पक्ष लो।
अब यही बात मैंने अपने एक पत्रकार बंधु को कही, तो उनका कहना था कि यार अब पत्रकारिता हमें मत समझाओ, तो हमने कहा कि यार जब तुम नेताओं को नेतागिरी करना तथा हमको नौकरी करना सिखा सकते हो तो हम तुम्हें पत्रकारिता करना क्यों नहीं सिखा सकते ? हमारे में कौन सा विटामिन डी की कमी है..?
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